बीजिंग । चीन पर तिब्बत के लोगों की जमीन हड़पने करने के आरोप लगे हैं। रिपोट्र्स के मुताबिक चीन तिब्बत के रेबगोंग और किंघाई इलाके में लिंग्या हाइड्रो पावर डैम बनाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए उसे आसपास के इलाके खाली कराने की जरूरत है।
हालांकि, कई लोग अपनी जमीन और घर छोडऩे को तैयार नहीं हैं। ऐसे में चीन के अधिकारी इन लोगों को मुआवजा नहीं देने की धमकी दे रहे हैं। चीन जिस हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए लोगों की जमीन जब्त कर रहा है वो उसके फाइव ईयर प्लान का हिस्सा है। जिस पर 285 करोड़ रुपए किए जाने हैं।
चीन हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए तिब्बत के शू-ओंग के, ओंग नी था, माल्पा जाम और माल्पा खारनांग खारसी और मालपा चाउवो के इलाके को खाली करवा रहा है। डैम का काम जल्द शुरू हो जाएगा। लोगों का कहना है कि अपने गांव और खेतों के अलावा गुजारे के लिए उनके पास कोई दूसरा चारा नहीं है। ऐसे में जब अधिकारी उनसे जमीन खाली करवा लेते हैं तो उन्हें चीन के शहरों में जाकर मजदूरी करनी पड़ती हैं। चीन जबरन तिब्बत के लोगों को अपने कल्चर में शामिल करने के लिए ऐसा कर रहा है।
चीन और तिब्बत का विवाद बरसों पुराना है। चीन का दावा है कि तिब्बत 13वीं शताब्दी में चीन का हिस्सा था, इसलिए तिब्बत पर उसका हक है। तिब्बत चीन के इस दावे को खारिज करता है। 1912 में तिब्बत के 13वें धर्म गुरु दलाई लामा ने तिब्बत को स्वतंत्र घोषित कर दिया। तब चीन ने इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई, पर जब 1949 में चीन में कम्युनिस्ट सरकार सत्ता में आई तो उसकी विस्तारवादी नीतियों के चलते तिब्बत की आजादी को खतरा पैदा हो गया। 6-7 अक्टूबर 1950 को चीनी सेना ने तिब्बत पर हमला कर दिया और 8 महीने चले संघर्ष के बाद तिब्बती सेना को मात दे दी। चीन ने तिब्बत को समझौते पर बातचीत के लिए अपना प्रतिनिधि बीजिंग भेजने को कहा। आखिरकार 23 मई 1951 को तिब्बत ने चीन के साथ एक 17 प्रस्तावों वाले समझौते पर हस्ताक्षर कर दिया, जिससे चीन ने तिब्बत पर अपने कब्जे को आधिकारिक जामा पहना दिया। 18 अप्रैल 1959 को तिब्बत के 14वें दलाई लामा ने घोषणा कि चीन ने ये समझौता जबरन करवाया था, इसलिए चीन का तिब्बत पर कब्जा अवैध है, लेकिन इसके बावजूद चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया और तिब्बत पर उसका कब्जा आज भी कायम है। दलाई लामा तिब्बत के सबसे बड़े धार्मिक नेता को कहा जाता है। तिब्बत के वर्तमान दलाई लामा, उनके 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यास्टो हैं, जो 1959 से ही भारत में रहते हैं।