मैं नीरा कुमार हूं। जीवन की गति और दिशा कब बदल जाए किसी को नहीं मालुम। पर मेरे ऊपर यह अक्षरश: सच साबित होती है। लखनऊ यूनिवर्सिटी से 1974 में एंथ्रोपोलॉजी यानी मानव शास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री ली ,साथ ही जर्मन भाषा में डिप्लोमा भी किया। मेरी शुरू से इच्छा थी कि 'टीचिंग प्रोफेशन' अपनाऊं। अपने मोहल्ले के बच्चों को प्रतिदिन शाम को पढ़ाती भी थी। पर यह भी सच है कि हर सपना साकार नहीं होता।एम० ए० करते-करते ही विवाह बंधन में बंध गई। पति के साथ दिल्ली आ गयी। दो प्यारे प्यारे बच्चों की मां जो बन गई थी।

मेरी शुरू से एक आदत है कि हर वह काम जो मुझे नहीं आता उसे चुनौती की तरह स्वीकारती हूं । बच्चों का लालन- पालन, खाना बनाना, घर ठीक रखना ,हर काम समय के साथ करती हूं ।यह आदत आज भी कायम है ।1991 में वाई०एम०सी०ए० में हिंदी पत्रकारिता का डिप्लोमा कोर्स शुरू हुआ और प्रवेश परीक्षा के बाद 30 बच्चों में मेरा भी चयन हो गया। उम्र के तीन दशक पार कर चुकी थी और चौथे में 2 वर्ष बाद दस्तक देने वाली थी। सभी से उम्र में बड़ी थी। कुछ लोग आगे पीछे कह ही देते थे की अफसर की बीवी हैं, समय पास करने आई हैं। इसी तरह जहां हम रहते थे, वहां की एक दो महिला भी यही कहती थी कि  क्या बूढ़े तोते भी कुरान पढ़ते हैं। खूब सुना ,बुरा भी लगा पर इन सब के साथ अपने मन में इरादे भी और मजबूत होते गए।

मैंने पत्रकारिता का प्रशिक्षण लेते लेते छह महीने बाद ही हिंदी के प्रमुख अखबारों जैसे दैनिक हिंदुस्तान, नवभारत टाईम्स, राष्ट्रीय सहारा, जनसत्ता ,स्वतंत्र भारत, आज, दैनिक भास्कर आदि अखबारों में लिखना शुरू कर दिया। पत्रकारिता का कोर्स समाप्त हुआ और मैं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो गई। नौकरी करना नहीं था, अतः स्वतंत्र पत्रकारिता करती रही। 

पत्रकारिता करते करते कब कुकरी जो मेरा पैशन था उसने कब कुकरी एक्सपर्ट बना दिया मुझे नहीं मालुम । मुझे आज भी याद है कि शायद 1992 में नवभारत टाइम्स में मेरी दो रेसिपी छपी थी एक थी छल्लेदार गट्टे और दूसरी सेंवई रबड़ी पुडिंग। फोटोग्राफर थी सर्वेश ताई ।फिर एक कुकरी कंटेस्ट वनिता का पहली बार हुआ उसमें भी पुरस्कृत हुई। धीरे धीरे ,मेरे शाकाहारी व्यंजनों की मांग सभी मैगजीन और अखबारों में होने लगी। डायमंड पब्लिकेशन के अंतर्गत मैंने 751 वेज कुक बुक व कई 161 रेसिपी बुकजी़न लिखीं। आज भी मैं रेसिपीज के क्षेत्र में कुछ न कुछ नया प्रयोग करती ही रहती हूं। मैं अपनी रेसिपीज को हेल्थ से जोड़कर करती हूं ।

अंत में सभी पाठिकाओं से यही कहूंगी कि यदि आप अपनी प्रतिभा एवं पैशन के प्रति समर्पित रहें तो कामयाबी की राह पर बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता। उम्र तो एक गिनती है बस आगे बढ़ने का दृढ़ संकल्प होना चाहिए।